- पाँव में हो रहे बार- बार सूजन को न करें नजरअंदाज, हाथीपाँव का हो सकता है लक्षण
- जिले में एक हज़ार के करीब हैं फाइलेरिया (हाथीपांव) के मरीज
सासाराम : किसी भी बीमारी के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करना घातक बन सकता है। यदि समय रहते ही उक्त लक्षण की पहचान न की जाए तो बीमारी घातक बन सकती है। कुछ बीमारियां तो ऐसी होती हैं जो एक बार हो जाने पर जीवन भर के लिए बोझ बन जाती है। उन्हीं में से एक है हाथीपांव यानी फाइलेरिया। हाथीपांव एक ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति का पांव हाथी के पाँव के समान हो जाता और जब यह बीमारी एक बार हो गया तो इसे ठीक नहीं किया जा सकता है। इसलिए इस बीमारी के लक्षण की पहचान समय रहते की जाए तो इस बीमारी को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। यदि पांव में बार-बार सूजन होने की शिकायत हो तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह हाथीपांव यानी फाइलेरिया के लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि समय पर उचित डॉक्टरी सलाह ली जाए। पिछले वर्ष जुलाई में रोहतास जिले में हुए नाइट ब्लड सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार जिले में एक हजार के आसपास हाथी पाँव के मरीज पाए गए हैं। वहीं सर्वे के पहले से मौजूद कई लोगों में यह बीमारी तो चौथे स्टेज तक जा पहुंची है।
लोगों में है जागरूकता का अभाव
फाइलेरिया बीमारी को लेकर लोगों में अभी भी जागरूकता का अभाव देखा जा रहा है। पैरों में हो रहे बार-बार सूजन को कुछ लोग अभी भी नजरअंदाज कर रहे और बिना डॉक्टर को दिखाए और जांच कराएं मेडिकल स्टोर से दवा लेकर अस्थाई समाधान पा रहे हैं। वहीं वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी जयप्रकाश गौतम ने बताया कि फाइलेरिया को लेकर लगातार जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे और समय-समय पर एमडीए (सर्व जन दवा सेवन) अभियान के माध्यम से लोगों को फाइलेरिया की रोकथाम के लिए दवा भी खिलाई जा रही हैं। परंतु अभी भी कहीं ना कहीं लोगों में जागरूकता का अभाव दिखाई दे रहा है।
अभियान में लें बढ़ चढ़ कर हिस्सा–
अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी, रोहतास डॉ अशोक कुमार सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार ने 2030 तक फाइलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य रखा है। रोहतास जिला स्वास्थ्य समिति इस उन्मूलन अभियान में जिले को भी फाइलेरिया मुक्त करने में प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि फाइलेरिया उन्मूलन अभियान में सामुदायिक स्तर पर लोगों का जागरूक होना जरूरी है। फाइलेरिया कभी ना ठीक होने वाली बीमारी है। यदि एक बार हो गया तो उसे ठीक नहीं किया सकता है। इसलिए जरूरी है कि समय पर इसकी पहचान करके इस बीमारी को रोका जा सके। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया से बचाव और रोकथाम के लिए साल में एक बार फाइलेरिया रोधी दवा अल्बेंडाजोल और डीईसी का सेवन कराया जाता है। ताकि लोगों में मौजूद फाइलेरिया के परजीवी समाप्त हो जाए। उन्होंने लोगों से अपील की है कि फाइलेरिया रोकथाम के लिए जो भी अभियान चलाए जा रहे उसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लें ताकि फाइलेरिया उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल किया जा सके।