औरंगाबाद। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को को मनाया जाता है। महिलाओं के विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान तथा उपलब्धियों को पहचान दिलाने के लिए यह हर वर्ष मनाया जाता है। इस बात को नकारा नहीं जा सकता की आज के समाज में महिलाओं का योगदान पुरुषों के बराबर रहा है कहने का तात्पर्य यह है कि महिलाएं स्वयं रूप से अपने निर्णय लेने के लिए उस जगह पर अभी भी स्वतंत्र नहीं है। उदाहरण के तौर पर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में मुखिया महिलाएं अपने पंचायत से निर्वाचित तो हो जाती है। लेकिन उसके बाद कभी भी आम जनता के बीच नहीं जाती है। उनके कार्य को पतिदेव के द्वारा ही देखा जाता है। तो फिर महिलाएं अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र कहां है। यह बात सिर्फ पंचायत चुनाव के मुखिया के नहीं है कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां की महिलाएं पूरी तरह से स्वयं निर्णय लेने में अपने आप को घुटन सी महसूस करती हैं हां यह बात जरूर है कि महिलाएं सभी कार्य में पुरुषों से भी आगे निकल गयी हैं। शिक्षा के क्षेत्र से लेकर हेल्थ सेक्टर और ऐसे ही कई क्षेत्रों में जिसकी कल्पना पहले की सामाजिक स्थिति में करना नामुमकिन सा था उन सभी क्षेत्रों में महिलाओं का विशेष योगदान रहा है। किन्तु अभी भी समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हे महिलायें सिर्फ घर की चार दीवारी में ही अच्छी लगती हैं। अभी भी भारत ही नहीं बल्कि विकासशील देशों में महिलाओं की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है।
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