हमारे देश में समाज के सभी वर्गों को सामाजिक न्याय, सम्मान के साथ जीने, कंधे से कंधा मिलाकर चलने, स्वतंत्र विचार एवं अभिव्यक्ति के अवसर दिए जाने की रूपरेखा हमेशा से खींची जाती रही है और यह हमारे देश की जनतांत्रिक भावना ही है, जिसके वजह से सभी वर्गों को केंद्र में रखकर समावेशी विकास की परिकल्पना को साकार किया जा सके। जातीय जनगणना द्वारा सामाजिक न्याय की परिकल्पना की गई है। जातीय जनगणना सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम है। इस गणना के आंकड़ों से समाज के अंतिम पायदान पर खड़े सामाजिक समूह को आगे आने का विश्वसनीय अवसर मिलेगा। बिहार सरकार सामाजिक न्याय के लिए संघर्षों तथा न्याय के मूल्यों के लिए पूर्णता प्रतिबद्ध दिखाई देती है। सामाजिक न्याय का उद्देश्य राज्य के सभी नागरिकों को समावेशी रूप से सामाजिक समानता उपलब्ध कराना है। समाज के प्रत्येक वर्ग के कल्याण के लिए व्यक्ति की आज़ादी ज़रूरी है। भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य है और यहां सामाजिक न्याय का मुख्य उद्देश्य लैंगिक, जातिगत, नस्लीय एवं सामाजिक-आर्थिक भेदभाव के बिना सभी नागरिक की मूलभूत अधिकारों तक समान पहुंच सुनिश्चित करना है। लेखक ने इस अध्याय में इस बात पर ज़ोर दिया है कि वर्ष 2047 तक भारत ने विकसित राष्ट्र बनने का जो सपना देखा है वह वंचित, शोषित, हाशिए पर जीवन-यापन करने वाले वर्गों के सशक्तीकरण के द्वारा ही संभव होगा।
बिहार भारतवर्ष में प्रथम राज्य है जिसने जाति आधारित गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक किया है। यह बिहार सरकार का साहसिक और ऐतिहासिक कार्य है। आगामी लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव से पहले इस रिपोर्ट को जारी करना इसलिए भी मायने रखते हैं, क्योंकि इंडिया गठबंधन में इस मुद्दे पर आम सहमति बनने की संभावना है। कांग्रेस लगातार 2024 में सरकार में आने पर देश में जाति जनगणना करवाने का वादा कर रही है। बिहार सरकार ने जातीय गणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं। प्रभारी मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह इसे लेकर एक किताब जारी की है। उन्होंने कहा कि बिहार में 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 की कुल आबादी है और 2 करोड़ 83 लाख 44 हजार 160 परिवार हैं। विकास के सिद्ध सिद्धांत पर अग्रसर होते हुए राज्य सरकार ने सभी धर्म एवं जातियों के सूचनाओं के अतिरिक्त सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास के लिए शैक्षिक एवं आर्थिक आंकड़ा को संकलन किया है।
बिहार जाति आधारित गणना-2022 की रिपोर्ट सार्वजनिक (2 अक्टूबर 2023) कर दिया है। बिहार सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट में बिहार में पिछड़ा वर्ग और अत्यन्त पिछड़ा वर्ग को मिलकर 63.13 प्रतिशत आबादी है। यानि दोनों को मिलाकर देखें तो साफ है कि कुल पिछड़ा वर्ग की आबादी 63 फीसदी से अधिक है। जो राज्य में किसी भी सामाजिक समूह के मुकाबले सबसे अधिक संख्या है। इस रिपोर्ट को बिहार में 63% पिछड़े की राजनीति के लिए एक नई शुरुआत के तौर पर भी देखा जा रहा है। बिहार जातीय गणना की रिपोर्ट और जातियों-समुदायों की आबादी के आंकड़े जारी कर दिए गए हैं। इस कोटिवार संक्षिप्त विवरणी के फलस्वरूप कितनी आबादी वर्ग आंकड़े (प्रतिशत में) अत्यन्त पिछड़ा वर्ग – 36.01%, पिछड़ा वर्ग – 27.12%, अनुसूचित जाति – 19.65%, अनुसूचित जनजाति – 1.06%, सामान्य – 15.52% आदि। आंकड़ों के अनुसार 13 करोड़ की आबादी वाले बिहार में किस जाति की संख्या कितनी: यादव- 14.26, मुस्लिम – 17.7, ब्राह्मण – 3.65, भूमिहार – 2.87, कोइरी – 4.27, कुर्मी – 2.8, कायस्थ- 0.6, मोची, चमार, रविदास – 5.2, मुसहर 3.08, राजपूत 3.45, बनिया – 2.31, तेली – 2.81, धानुक – 2.14, नोनिया – 1.91, पानर – 1.70, नाई – 1.59, बढ़ई – 1.45, मोमिन – 3.55, कानू – 2.21, दुसाध – 5.31, मल्लाह – 2.6, कुंजरा – 1.40, धुनिया – 1.43 आदि।
बिहार में किस धर्म की कितनी आबादी (प्रतिशत में) : हिंदू – 81.99, मुस्लिम – 17.7, ईसाई – 0.057, सिख – 0.011, बौद्ध – 0.085, जैन – 0.009, अन्य – 0.127, कोई धर्म नहीं 0.0016 आदि। सरकार ने कहा कि रिपोर्ट का उपयोग सर्वप्रथम समाज के सबसे निचले पायदान पर मौजूद लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के प्रयास के साथ समाज और राज्य के सर्वांगीण विकास में किया जा सकेगा।
इस क्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में प्रभावी, अद्वितीय एवं अद्भुत क्षमता है कि वे जाति आधारित गणना के व्यावहारिक पक्षों के साथ ही इस मुद्दा को राष्ट्रीय फलक पर गंभीर चर्चा-परिचर्चा और लोक-विमर्श का विषय बना दिया है जो सामाजिक सौहार्द, समरसता एवं प्रगतिशील सृजन समाज के लिए कटिबद्ध है। बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना का निर्णय सशक्त एवं प्रभावी रूप से लिया था और इस फैसले ने पूरे देश में एक नई बहस छेड़ दी है। अब भारतीय समाज में जवलंत सामाजिक मुद्दा है। इससे नई परिस्थितियों में नई आवश्यकताओं के अनुरूप सुशासन बाबू की छवि रखने वाले नीतीश कुमार ने सामाजिक न्याय के लिए इस गणना की शुरूआत की है। सर्वतोमुखी विकास के लिए नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी का साहसिक तथा रचनात्मक कदम उठाया है, वैसा ही इस गणना का व्यावहारिक एवं ऐतिहासिक पहल दिखता है और इसमें उनका योगदान सर्वोपरि है। दरअसल, बिहार के समस्त जनप्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से “जाति आधारित गणना” को ध्वनिमत के साथ, पक्के इरादे से समर्थन किया था और बिहार में सभी पार्टियों ने जाति आधारित गणना पर अपनी सहमति दिखाई थी। इसलिए बिहार में सम्पन्न सर्वदलीय बैठक में एकमत होकर सभी 9 दलों ने जनहित और राष्ट्रहित में जाति आधारित गणना कराए जाने के प्रस्ताव को 16वीं विधानसभा में दो बार (18 फरवरी 2019 व 27 फरवरी 2020) मंजूर किया और पुरजोर समर्थन किया था। इस जातिगत जनगणना से पूरे बिहार राज्य के 13 करोड़ आबादी की जाति, धर्म और संप्रदाय के साथ ही उसकी आर्थिक-सामाजिक-शैक्षणिक स्थिति का भी आकलन हो सकेगा। यह आंकड़ा पता चलने के उपरांत पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ देकर उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है। इसके अलावा यह भी तर्क दिया जाता है कि जातीय गणना से किसी भी जाति की आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की वास्तविक स्थिति का पता चल पाएगा, इससे उन जातियों के लिए समावेशी विकास की लोक कल्याणकारी योजनाएँ बनाने में आसानी होगी।
फलत: जाति आधारित गणना को लेकर पटना उच्च न्यायालय ने नीतीश सरकार को बड़ी राहत दी थी। जातीय सर्वेक्षण मामलें पर फैसला सुनाते न्यायालय ने बिहार सरकार को जाति आधारित गणना कराने की अनुमति दी थी। इस मामले में दायर विरोधियों की याचिका को पटना उच्च न्यायालय ने ख़ारिज कर दिया था। मुख्य न्यायाधीश के. वी. चंद्रन की खंडपीठ ने जातीय सर्वेक्षण के विरुद्ध दायर याचिकायों को ख़ारिज कर दिया था। लगभग चार महीने के इंतजार के बाद आखिरकार नीतीश कुमार-लालू प्रसाद का ड्रीम प्रोजेक्ट माने जानेवाले जातीय सर्वे को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पटना उच्च न्यायालय अपना फैसला सुनाया था। पिछली सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी. के. शाही ने न्यायालय के समक्ष पक्ष प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा कि ये सर्वे है, जिसका उद्देश्य आम नागरिकों के सम्बन्ध आंकड़ा एकत्रित करना है, जिसका उपयोग उनके लोक कल्याण और जन हितों के लिए किया जाना है। उन्होंने न्यायालय को बताया कि जाति सम्बन्धी सूचना, शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश या नौकरियां देने के समय भी दी जाती है। महाधिवक्ता शाही ने कहा कि जातियां समाज का हिस्सा हैं, उन्होंने कहा कि हर धर्म में अलग अलग जातियाँ होती है।
अंतत: पटना उच्च न्यायालय से नीतीश सरकार को बड़ी राहत मिली थी। उच्च न्यायालय ने जाति आधारित गणना और आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इसी के साथ बिहार में जाति आधारित सर्वे को हरी झंडी मिल गई थी। राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि यह राज्य का नीतिगत निर्णय है और इसके लिए बजटीय प्रावधान किया गया। सरकार ऐसी कोई जानकारी नहीं मांग रही है जिससे निजता के अधिकार का हनन होगा। राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के बारे में जानकारी इकट्ठा कर जन कल्याणकारी योजनाओं और जनोन्मुखी कार्यकर्मों का लाभ विभिन्न वर्गों तक पहुंचा सके। यानि बिहार में जातीय गणना वंचित एवं मात्र पिछड़े वर्गों की ही नहीं हो रही बल्कि इसमें सवर्ण वर्ग भी बराबर रुप से शामिल है। इसके साथ ही, वर्तमान में सरकार के पास जातियों की संख्या को लेकर कोई वैज्ञानिक आंकड़ा मौजूद नहीं था। जाति को लेकर सुनाई देने वाले सभी आंकड़े अनुमान के आधार पर प्रस्तुत किए जाते थे। इसलिए समावेशी विकास के लिए जाति जनगणना जरूरी है। इससे आपको अपने सामाजिक न्याय की योजना का निरीक्षण कर पाने और आरक्षण का दायरा बढ़ाने में मदद मिलेगी। आरंभ से ही आरक्षण के मूल में अनुपातिक प्रतिनिधित्व की मांग आधारभूत भावना का परिचायक रही है। इसलिए अब यह जरूरी हो गया है कि जातिगत जनगणना को पूरे देश में कराया जाये, ताकि सामाजिक न्याय एवं लोकतांत्रिक जड़ों को बेहतर बनाया जा सके। अत: जातीय जनगणना का उद्देश्य वंचित जातियों को संख्या के आधार पर अधिकार दिलाना है जो एक स्वागत योग्य कदम है। फलत: यह आवाज सिर्फ जाति आधारित गणना की आवाज नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन हेतु हाशिये के लोगों की अंतरात्मा की आवाज है।
जाति सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन का महत्वपूर्ण पहलू है। सामाजिक संस्था के रूप में, यह बहुत मजबूती के साथ खड़ी है और आधुनिक युग में भी जाति अभी विद्यमान है। यद्यपि कि जाति के अंदर बहुत से परिवर्तन आ गए हैं फिर भी यह राजनीति एवं राजनीतिक जातिगत दलों के साथ पूरी तरह से घुल-मिल गई है और कोई भी राजनीतिक दल इसकी अनदेखी नहीं कर सकता।
ये आंकडे वंचितों, उपेक्षितों और गरीबों के समुचित विकास और तरक्की के लिए समग्र योजना बनाने और हाशिए के समूहों को आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने में देश के लिए उदाहरण पेश करेंगे। सरकार को अब सुनिश्चित करना चाहिए कि जिसकी जितनी संख्या, उसकी उतनी हिस्सेदारी हो। अब राज्य के संसाधनों पर न्यायसंगत अधिकार सभी वर्गों का हो।
अंत में, बिहार सरकार द्वारा जारी जाति आधारित जनगणना रिपोर्ट आंकड़े खुद बोलता है। यह ऐतिहासिक क्षण है जो कि दशकों के संघर्ष का प्रतिफल है। आज 2 अक्टूबर 2023 को गांधी जयंती के अवसर पर सामाजिक न्याय की धारा को एक नया बल मिला है। 84.48 प्रतिशत लोग अभी तक हाशिये पर हैं, यह बहुत दुखद स्थिति है। अब सरकार की जिम्मेदारी बढ़ गई है। इन रिपोर्ट को सरकार केवल आंकड़े के निमार्ण के लिए नहीं, बल्कि योजनाओं, नीतियों और विकास के कार्यक्रमों को सही तरीके से धरातल पर लागू किया जाये तो यह हाशिये के समाज के लिए नया जीवन होगा। यह उम्मीद करते हैं कि आंकड़े पर किए खर्च को अब धरातल पर पहुंचाया जाये। इसलिए, भारत के जातिगत आंकड़े जानना ज़रूरी है।
आलेख
डॉ. कृष्ण चन्द्र चौधरी
विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग, सहजानंद ब्रह्मर्षि महाविद्यालय, (वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा, बिहार)।