भोजपुर: बिहार में पोस्टमॉर्टम के सरकारी सिस्टम की हालत बेहद बदहाल है। सरकारी अस्पतालों में खुलेआम पोस्टमॉर्टम के लिए सौदेबाजी की जाती है। परिवार की हैसियत देखकर पोस्टमॉर्टम करने वाले कर्मचारी पैसों की डिमांड करते हैं। वहीं मृतक के स्वजनों को अमानवीय व्यवहार से भी गुजरना पड़ता है। आपको यह जानकर तो और धक्का लगेगा कि लावारिस लाशों के पोस्टमॉर्टम के लिए भी पुलिसकर्मियों से पैसे मांगे जाते हैं। भोजपुर जिले का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल सदर अस्पताल है। यहां शवों पर भी सौदा होता है। कहने का मतलब कि यहां शवों के पोस्टमॉर्टम करने की एवज में सरेआम गमजदा परिवार से रुपये लिए जाते हैं। पोस्टमॉर्टम करने से लेकर लाश को टांका लगाने तक खुलेआम मोल-तोल होता है।
यह सब सौदेबाजी का खेल डॉक्टरों और पोस्टमॉर्टम कराने आए पुलिसकर्मियों के आंखों के सामने चलता है। लेकिन, फिर भी कोई कार्रवाई या कारगर पहल नहीं की जाती है। गमजदा परिवार अपनो के खोने के बाद भी उनकी जेब भरने को विवश है। ‘दैनिक जागरण’ ने ‘पोस्टमॉर्टम का पोस्टमॉर्टम’ अभियान के तहत वसूली की गहराई से पड़ताल की। जो तथ्य सामने आए वह शर्मानक ही नहीं बल्कि अमानवीय है। संध्या समय पोस्टमॉर्टम हाउस के बाहर भीड़ लगी थी। बड़हरा के सिन्हा गांव में एक मजदूर परिवार के बच्ची की सर्पदंश से मौत हो गई थी। स्वजन थाने के चौकीदार के साथ शव को पोस्टमॉर्टम के लिए सदर अस्पताल लाए थे। पोस्टमॉर्टम कर्मी शव का चिर-फाड़ करने के बाद 500 रुपये की डिमांड करने लगा। उसका कहना था कि पूरा पैसा नहीं मिलेगा तभी लाश की सिलाई करेगा। स्वजन गरीब परिवार का हवाला देते हुए पहले दो सौ और फिर तीन सौ रुपये दिए। लेकिन, प्राइवेट पोस्टमॉर्टम कर्मी पैसा लौटाने लगा। बाद में हर थाक कर स्वजनों को पांच सौ रुपये देने पड़े
यहां पोस्टमॉर्टम की एवज में रुपये देने ही पड़ते हैं। यहां कार्यरत प्राइवेट कर्मी मृतक के स्वजनों की हैसियत देखकर रकम तय करते हैं। खाकी से लेकर अत्यंत गरीब तक से भी रुपये लिए जाते हैं। पांच सौ रुपये से लेकर एक हजार रुपये की डिमांड की जाती है। इसके अलावा, पोस्टमॉर्टम समेत बिसरा के लिए प्रयुक्त सामान जैसे शीशे का जार, साबुन से लेकर नमक तक गमजदा स्वजनों को ही देना पड़ते हैं। अमूमन हर वर्ष एक हजार शवों का पोस्टमॉर्टम यहां होता है। अगर प्रतिमाह के हिसाब से देखें तो करीब 80 से 90 शवों का पोस्टमॉर्टम होता है। इसमें सर्वाधिक सड़क व दुर्घटना समेत हत्या से जुड़े मामले होते ह किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद उसकी मृत्यु का सटीक कारण का पता लगाने के लिए पोस्टमॉर्टम किया जाता है। जहां विशेषज्ञ चिकित्सक शव का बाहरी निरीक्षण करते हैं या जरूरत पड़ने पर शरीर के अंदर के अंगों की भी जांच करते हैं। अब यहां हैरानी ती बात तो यह है कि सदर अस्पताल में पोस्टमॉर्टम के लिए सिर्फ एक सरकारी कर्मी वर्ष 2011 से ही कार्यरत है। सिस्टम का खेल यह है कि सरकारी कर्मी ने ही दो प्राइवेट कर्मी रखे हैं, जो अलग-अलग शिफ्ट में आकर शवों का पोस्टमॉर्टम करते हैं।