सामाजिक न्याय के लिए लम्बे समय से देश में जाति आधारित गणना की माँग लगातार चली आ रही है। इस मांग को लेकर तीसरे मोर्चे की पार्टियाँ हमेशा से सबसे अधिक मुखर रही है। इन पार्टियों का तर्क है कि जाति आधारित जनगणना के जरिये जाति समूहों की वैज्ञानिक गिनती से न सिर्फ सरकारों को सामाजिक न्याय के वादे को नया आकार देने में मदद मिलेगी, यह समावेशी विकास के लक्ष्यों को विस्तृत करने में भी मदद मिलेगी। इसके साथ ही, समुचित प्रतिनिधित्व से महरूम जाति समूहों को मनोसामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीति में भागीदारी के लिए भी अवसर मिलेगा। लेकिन इस मांग पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह जाति आधारित अस्मितावादी राजनीति के अभ्यास को नए सिरे से परिभाषित करके, एक ताकतवर राजनीतिक औजार के तौर पर उभर सकता है।
बिहार में 75 प्रतिशत वाला बिल विधानसभा और विधानपरिषद दोनों सदनों से पारित होने के बाद राज्यपाल के पास भेजा गया था। राज्यपाल ने भी बिल 16 नवंबर 2023 को हस्ताक्षर कर दिया। बिहार विधामंडल के दोनों सदनों से 10 नवंबर 2023 को सर्वसम्मति से पारित आरक्षण संबंधी विधेयक पर राज्यपाल के हस्ताक्षर के साथ ही नया कानून प्रभाव में आ गया है। राज्यपाल के हस्ताक्षर के साथ ही सभी सरकारी नियुक्तियों में आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को आरक्षण की बढ़ी हुई सीमा का लाभ मिलने लगेगा। फिलहाल यह विधेयक गजट में प्रकाशन के लिए सामान्य प्रशासन विभाग के पास पहुंच चुका है। फलत: आरक्षण बिल पर राज्यपाल ने लगाई मुहर, गजट प्रकाशन के साथ ही होगा लागू। सरकारी सेवाओं के अलावा शिक्षण संस्थानों के नामांकन में भी आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया गया है। अब सेवाओं और नामांकन में आरक्षण सीमा बढ़ाने वाले विधेयकों की मंजूरी के साथ ही अनुसूचित जाति को 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 2 प्रतिशत, अति पिछड़ों को 25 प्रतिशत और पिछड़ों को 18 प्रतिशत आरक्षण मिलने लगेगा। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को पहले से ही 10 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है।
इस तरह बिहार राज्य की सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थानों में अनारक्षित श्रेणी की 25 प्रतिशत सीटें बचेंगी। इन्हें भरने के लिए खुली प्रतिस्पर्धा होगी, जिसमें सभी वर्ग के अभ्यर्थी शामिल होंगे। ये विधेयक विधानसभा में 9 नवंबर 2023 और विधान परिषद में 10 नवंबर 2023 को सर्वसम्मति से पारित किए गए थे। इसके बाद विधान परिषद ने विधेयक पारित होने की सूचना विधानसभा को दी। फिर विधानसभा से सभी विधेयक एक साथ राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजे गए थे। इसके साथ राज्य सरकार के विधि विभाग की सलाह भी राजभवन को भेज दी गई थी। दरअसल, यह एक तरह की औपचारिकता होती है, जिसमें विधि विभाग पत्र के माध्यम से राज्यपाल को सलाह देता है कि विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है और राज्यपाल किन विधेयकों पर दस्तखत करने के लिए सक्षम है। अब आरक्षण की सीमा का विस्तार राज्य की सेवाओं में लाभ देने के लिए किया गया है, इसलिए राज्यपाल इस पर हस्ताक्षर करने के लिए सक्षम थे। अत: आरक्षण बिल पर राज्यपाल ने लगाई मुहर, गजट प्रकाशन के साथ ही सरकारी सेवाओं के अलावा शिक्षण संस्थानों के नामांकन में भी आरक्षण लागू हो जायेगा।
बिहार में एक तिहाई से अधिक परिवार गरीबी (34.13%) है यानि गरीब परिवार 94000 लाख है। प्रवासन में 50 लाख लोग राज्य से बाहर रहते है। शिक्षा में प्राथमिक शिक्षा (22.67%); स्नातक (7%) और परास्नातक (1%) है। 95.5% लोगों के पास कोई वाहन नहीं है।
बिहार में फिलहाल आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य गरीब वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को छोड़कर अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को कुल मिलाकर 50 प्रतिशत आरक्षण मिला हुआ है। इस आरक्षण प्रपत्र को भी कभी नीतीश सरकार ने ही तय किया था। इस प्रपत्र के तहत एससी को 16 प्रतिशत, एसटी को 1 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग को 30 प्रतिशत (12 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग को और अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 18 प्रतिशत) और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए 3 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। इस तरह कुल आरक्षण 50 प्रतिशत था।
यह इंदिरा साहनी केस में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले से तय कई गई 50 प्रतिशत सीमा का डेढ़ गुना हो जाएगी। जाहिर है, आरक्षण की नई व्यवस्था को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दिए जाने की पूरी संभावना है। हो सकता है कि नीतीश-तेजस्वी सरकार नए आरक्षण प्रपत्र को न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर रखने के लिए संविधान की नौवीं अनुसूची का रास्ता अख्तियार करे।
बिहार में पहले जातिगत-सर्वेक्षण हुआ और फिर सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 75 फीसदी तक कर दी। यह फैसला विधानमंडल और कैबिनेट में पारित हो चुका है। बिहार में आरक्षण की सीमा 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का प्रस्ताव पास हो गया है। इसमें केंद्र सरकार द्वारा दिया गया ईडब्लूएस का 10 प्रतिशत आरक्षण भी शामिल है। इस तरह, राज्य में आरक्षण 75 प्रतिशत हो जाता है। बिहार विधानमंडल में बिना विरोध के 75 प्रतिशत आरक्षण वाला प्रस्ताव पास हुआ। अनुसूचित जनजाति वर्ग को एक प्रतिशत आरक्षण था, अब दो प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा। आरक्षण भारत में सकारात्मक कार्रवाई की एक प्रणाली है। यह ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों को शिक्षा, रोजगार, सरकारी योजनाओं, छात्रवृत्ति और राजनीति में प्रतिनिधित्व प्रदान करती है। अत: बिहार में अब सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 75 फीसदी आरक्षण है।
हमारे देश में समाज के सभी वर्गों को सामाजिक न्याय, सम्मान के साथ ने, कंधे से कंधा मिलाकर चलने, स्वतंत्र विचार एवं अभिव्यक्ति के अवसर दिए जाने की रूपरेखा हमेशा से खींची जाती रही है और यह हमारे देश की जनतांत्रिक भावना ही है, जिसके वजह से सभी वर्गों को केंद्र में रखकर समावेशी विकास की परिकल्पना को साकार किया जा सके।
जातीय जनगणना द्वारा सामाजिक न्याय की परिकल्पना की गई है। जातीय जनगणना सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम है। इस गणना के आंकड़ों से समाज के अंतिम पायदान पर खड़े सामाजिक समूह को आगे आने का विश्वसनीय अवसर मिलेगा। बिहार सरकार सामाजिक न्याय के लिए संघर्षों तथा न्याय के मूल्यों के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध दिखाई देती है। सामाजिक न्याय का उद्देश्य राज्य के सभी नागरिकों को समावेशी रूप से सामाजिक समानता उपलब्ध कराना है और समाज के प्रत्येक वर्ग के कल्याण के लिए व्यक्ति की आज़ादी ज़रूरी है।
आलेख
डॉ. कृष्ण चन्द्र चौधरी
विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग, सहजानंद ब्रह्मर्षि महाविद्यालय, (वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय), आरा