छपरा। छपरा की बेटी सुहानी कुमारी अपने दम पर साइकिलिंग में पदक लाकर बिहार का नाम देश में रोशन कर रही है। सारण के धूप नगर धोबवल के हरेंद्र सिंह एवं संगीता देवी की पुत्री 16 वर्षीय सुहानी कुमारी सीमित संसाधनों में साइकिलिंग रेस में भाग लेकर इतिहास रच रही है। सुहानी मीरा मातेश्वरी प्लस टू स्कूल मिश्रवलिया जलालपुर में 12 वीं छात्रा है। इसके साथ में साइकिलिंग भी करती है। गांव की पगडंडियों में साइकिल चलाकर साइकिलिंग प्रतियोगिता में पदक लाकर अपनी पहचान बनाई है।
सुहानी के पिता खेती करते थे। पांच पुत्री एवं एक पुत्र का भरापूरा परिवार जब खेती से नहीं चला तो बीकानेर की तेल कंपनी में नौकरी करने चले गए। सुहानी बताती हैं कि जलालपुर प्रखंड में साइकिल प्रतियोगिता थी, जिसमें उनकी दीदी मंजू कुमारी को प्रतियोगिता में प्रथम आने पर साइकिल मिली थी।
उसके बाद उसे भी साइकिलिंग प्रतियोगिता में भाग लेने का मन हुआ। इसी साइकिल से उसने साइकिल चलाना भी सीखा था। सुहानी को सारण जिला साइकिलिंग संघ का सहयोग भी मिला, लेकिन यहां साइकिलिंग ट्रैक नहीं होने से सुहानी को काफी परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। गांव की पगडंडियों पर साइकिलिंग का अभ्यास सुहानी ने जारी रखा। महाराष्ट्र के नासिक में नेशनल रूट चैंपियनशिप सब जूनियर गर्ल्स में 30 किलोमीटर रोड रेस इवेंट में गोल्ड मेडल मिला।
2021 में हरियाणा में नेशनल हुआ था, जिसमें सिल्वर और ब्राउन मिला था। पिछले दिनों झारखंड की राजधानी रांची खेल गांव में आयोजित 38 वीं सब जूनियर नेशनल ट्रैक साइकिलिंग चैंपियनशिप प्रतियोगिता 2023 में सुहानी ने रजत पदक जीता है। रोड एवं ट्रैक साइकलिंग दोनों तरफ दोनों प्रतियोगिताओं में वह भाग लेती है।
सुहानी के पिताजी ने बताया कि शुरुआती दौर में वह अपने गांव में नार्मल साइकिल से ही साइकिलिंग करती थी। मेरे पास इतना पैसा नहीं था कि महंगी साइकिल दिला सकूं। बढ़िया साइकिल आठ लाख रुपये से कम की नहीं है। किसी तरह मैंने दो लाख की साइकिल दिलाई है। इसी से वह रेसिंग करती है। साइकिलिंग रेसिंग के समय जो जूते पहने जाते हैं, उसकी कीमत 30 हजार रुपये होती है। हेलमेट कम से कम 10 हजार रुपये का आता है।
सुरक्षा का ख्याल रखते हुए सभी किट पहनकर साइकिल चलानी होती है। पिछले साल सुहानी का चयन खेलो इंडिया में ट्रायल देने के बाद हुआ है। उसके बाद इसे पटियाला साईं संस्था में ट्रेनिंग के दौरान साइकिल, जूते और हेलमेट मिले। उन्होंने बताया कि उसके पास अभी ट्रैक साइकिलिंग के लिए साइकिल नहीं है। रांची के खेल गांव में ट्रैक साइकिलिंग की प्रतियोगिता में उसने दूसरे से साइकिल मांग कर भाग लिया था।
उन्होंने कहा कि दूसरे राज्यों में जिस तरह से खेल में जीतने के बाद सम्मान मिलता है। बिहार सरकार की तरफ से इतना सम्मान खिलाड़ियों को नहीं मिलता है। बिहार में साइकिलिंग के अभ्यास के लिए ट्रैक भी नहीं है। साई सेंटर से प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आने-जाने का खर्च भी मुझे ही देना पड़ता है।