काराकाट संसदीय क्षेत्र से भोजपुरी स्टार एवं सिंगर पवन सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है। इसके साथ ही क्षेत्र में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। बड़ा सवाल है कि पवन सिंह की उम्मीदवारी से काराकाट क्षेत्र की हवा बदल जाएगी, क्या यहां का मतदान प्रभावित होगा?
पवन सिंह की उम्मीदवारी से राजपूत और यूथ वोटर पर क्या असर पड़ेगा। क्या पवन सिंह अपने फैंस को वोटर में बदल पाने में कामयाब होंगे।
काराकाट संसदीय क्षेत्र में अगड़ी जातियों में सबसे अधिक संख्या राजपूत वोटरों की है। इनकी संख्या करीब 2 लाख 16 हजार हैं। इनके बाद क्षेत्र में करीब 93 हजार ब्राह्मण और 62 हजार भूमिहार वोटर हैं। साल 2009 के परिसीमन से पहले काराकाट का इलाका बिक्रमगंज लोकसभा के तौर पर जाना जाता था। यहां 2009 से पहले हुए लोकसभा चुनावों में राजपूत उम्मीदवार जीतते रहे हैं।
2007 के उपचुनाव में मीना सिंह, 2004 में अजीत सिंह जीते थे। 1998 में वशिष्ठ नारायण सिंह, 1984 और 1980 में तपेश्वर सिंह यहां से सांसद बने। 1962 में बिक्रमगंज लोकसभा सीट बनने के बाद हुए पहले चुनाव में भी राम सुभाग सिंह सांसद बने थे।
फर्स्ट टाइम वोटर्स पर पकड़
डेहरी के युवा पत्रकार कमलेश सिंह कहते हैं कि पवन सिंह का युवाओं में जबरदस्त क्रेज है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। जब भी जिले में पवन सिंह का कार्यक्रम हुआ है, भीड़ आउट ऑफ कंट्रोल हो गई है। ऐसे में युवा वोटरों पर पवन सिंह का पड़ेगा। इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
कमलेश सिंह के अनुसार काराकाट संसदीय क्षेत्र में 18-19 साल की उम्र के लगभग तीस हजार वोटर हैं। 18 से 25 साल की उम्र में करीब पौने दो लाख वोटर है। अब बड़ा सवाल है कि पवन सिंह के ये फैंस क्या वोट में बदल पाएंगे?
उपेंद्र कुशवाहा और राजाराम सिंह की कितनी है ताकत
काराकाट में NDA की ओर से रालोसपा के टिकट पर उपेंद्र कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, उनके सामने महागठबंधन से भाकपा-माले के राजाराम सिंह उम्मीदवार हैं।
2019 में उपेंद्र कुशवाहा जदयू के महाबली सिंह से करीब 84 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे, लेकिन उन्हें 36.1% वोट (313,866) मिले थे। इस चुनाव में भाकपा-माले के कैंडिडेट रहे राजाराम सिंह को 2.9% वोट (24,932) मिले थे।
इससे पहले, 2014 में जब कुशवाहा सांसद बने थे, तब उन्हें 42.9% वोट (338,892) मिले थे। उनके सामने राजद की कैंडिडेट कांति सिंह को 29.6% वोट (233,651) मिले थे। 2014 में राजाराम सिंह भाकपा-माले के कैंडिडेट थे, तब उन्हें 4.1% वोट (32,686) मिले थे।
2009 में राजद की कांति सिंह 30.6% वोट के साथ दूसरे स्थान पर रही थीं। चुनाव जीतने वाले जदयू के महाबली सिंह को 34.1% वोट मिले थे। भाकपा-माले के टिकट पर चुनाव लड़े राजाराम सिंह को 6.5% वोट (37,493) मिले थे।
काराकाट लोकसभा क्षेत्र में रोहतास के तीन विधानसभा क्षेत्र काराकाट, डेहरी और नोखा आते हैं। जबकि, औरंगाबाद जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र ओबरा, गोह और नवीनगर आते हैं। इसी ओबरा विधानसभा क्षेत्र से राजाराम सिंह 1995 और 2000 में विधायक बने थे।
काराकाट में पहली बार होगा त्रिकोणीय मुकाबला
पवन सिंह आरा से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन वहां से भाजपा उम्मीदवार आरके सिंह भी राजपूत हैं। ऐसे में पवन सिंह ने काराकाट को चुना है। यहां एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों के उम्मीदवार कुशवाहा जाति के हैं। ऐसे में अगड़ी जातियों में पवन सिंह की उम्मीदवारी का असर दिख सकता है।
2014 एवं 2019 के चुनाव में काराकाट संसदीय क्षेत्र में सीधा मुकाबला रहा है। एनडीए और महागठबंधन के उम्मीदवार ही आमने-सामने रहे हैं। इस बार भी माना जा रहा था कि एनडीए के उपेंद्र कुशवाहा एवं इंडिया गठबंधन के राजाराम में ही सीधा मुकाबला होगा। हालांकि, अब पवन की उम्मीदवारी मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार है। परिणाम चाहे जो हो, लेकिन अब काराकाट भी हॉट सीट हो गई है।