जन्मजात मोतियाबिंद के इलाज से 4 बच्चो की लौट चुकी है आखों की रौशनी
सासाराम। गर्भावस्था के दौरान उचित आहार एवं उचित पौष्टिक तत्वों की कमी गर्भवती महिलाओं के साथ गर्भ में पल रहे बच्चों के लिए कई सारी बीमारियों का कारण बनता है। उन्हें बीमारियों में से एक है कंजेनिटल कैटरेक्ट यानी जन्मजात मोदीयबिंद। जन्मजात मोतियाबिंद आंख का एक दुर्लभ जन्मजात दोष है जो दृष्टि संबंधित समस्याओं या अंधेपन का कारण बन सकता है। जन्मजात मोतियाबिंद का समय से पहले इलाज बच्चों के स्वास्थ्य और विकास के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। वही कई जन्मजात बीमारियों से बच्चों को बचाने के लिए सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के तहत बच्चों का निशुल्क इलाज भी करवा रही है। उन्हें कार्यक्रमों में से एक है राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम। इस कार्यक्रम के तहत जन्मजात मोतियाबिंद का इलाज कराकर बच्चों को आंखों की रोशनी प्रदान की जा रही है और उनकी जिंदगी संवारने का प्रयास किया जा रहा है।
जिले में अबतक 4 बच्चों का हो चुका है सफल इलाज
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार रोहतास जिले में अब तक चार ऐसे बच्चों का ऑपरेशन कराया जा चुका है जो जन्म से मोतियाबिंद से पीड़ित थे। इसकी जानकारी देते हुए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल पदाधिकारी डॉ नंदकिशोर चतुर्वेदी ने बताया कि जन्मजात मोतियाबिंद तब होता है जब आंख का लेंस साफ होने के बजाय धुंधला हो जाता है| उन्होंने बताया कि सर्जरी और विशेष नेत्र देखभाल से इसे ठीक किया जा सकता है। जन्मजात मोतियाबिंद एक या दोनों आंखों में हो सकता है। अगर जन्मजात मोतियाबिंद का जल्दी इलाज नहीं किया जाता है तो वह दृष्टि संबंधी समस्याएं या अंधापन पैदा कर सकते हैं।
जन्मजात मोतियाबिंद के लक्षण
डॉक्टर नंद किशोर चतुर्वेदी ने बताया कि जब किसी बच्चे को जन्मजात मोतियाबिंद होता है तो आंख का केंद्र यानी पुतली काला होने के बजे भूरा या सफेद दिखाई पड़ता है। ऐसा लगता है की पूरी पुतली किसी फिल्म से ढकी हुई है या पुतली के भीतर एक सफेद धब्बा दिखाई दे रहा है।
जन्मजात मोतियाबिंद के कारण
डॉ नंदकिशोर चतुर्वेदी ने बताया कि बच्चों में जन्मजात विकृतियां मुख्यताः गर्भावस्था के दौरान उचित खान-पान की कमी के कारण होता है। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान कुछ संक्रमण रोग जैसे रूबेला भी इसका मुख्य कारण हो सकता है|
जानकारी के अभाव में भटकते है लोग
डॉ नंदकिशोर चतुर्वेदी ने बताया कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत कई जन्मजात विकृतियों का निशुल्क इलाज सरकार के माध्यम से करवाया जाता है। परंतु अभी भी लोगों में इस की जानकारी का अभाव देखा जाता है जिस कारण लोग जहां तहां भटकते रहते हैं। डॉ नंदकिशोर चतुर्वेदी ने बताया कि जन्मजात मोतियाबिंद की पहचान होने पर या बच्चों में इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर अपने नजदीकी सरकारी अस्पताल में आरबीएसके में संपर्क किया जा सकता है। डॉ नंदकिशोर चतुर्वेदी ने बताया कि बच्चों में इस बीमारी का पता लगाने के बाद इसकी इलाज के लिए एम्स पटना रेफर किया जाता है जिसका पूरा खर्च सरकार वहन करती है। इसके लिए बच्चो को आयु 18 वर्ष से कम होनी चाहिए।