रांची (आईएएनएस)| राजनीति में हर मुलाकात का एक अर्थ होता है। ऐसे में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पिछले दिन जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और उससे पहले जदयू के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो की मुलाकात का गठबंधन की राजनीति के लिहाज से बड़ा अर्थ है। इन मुकालातों से इन संभावनाओं को बल मिल रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की राह में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हमसफर की भूमिका निभाने वाले हैं। खबर है कि नीतीश कुमार खुद हेमंत से मिलने झारखंड आने वाले हैं। इसके पहले वे ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक से मिलेंगे और फिर वे झारखंड के दौरे पर आयेंगे। इससे पहले नीतीश और तेजस्वी बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से मिल चुके हैं।
विपक्षी दलों की एका की मुहिम को झारखंड के संदर्भ में देखें तो 2024 के लोकसभा के बाद झारखंड में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। चुनावों के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा की तैयारियां चल रही हैं। नीतीश की पार्टी जदयू का कोइरी-कुर्मी जाति के बीच बड़ा जनाधार माना जाता है। झारखंड में भी इन दोनों जातियों की खासी आबादी है। झामुमो जानता है कि नीतीश के साथ चलने से झारखंड में उसका फायदा है। झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं जिनमें से 12 पर भाजपा का कब्जा है। झामुमो के पास लोकसभा की सिर्फ एक सीट है। जदयू का साथ मिलने से झामुमो को कम से कम चार लोकसभा सीटों पर लाभ मिल सकता है।
दूसरी तरफ जदयू भी झारखंड में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटा है। डेढ़ दशक पहले झारखंड विधानसभा में जदयू के पांच विधायक हुआ करते थे। उन दिनों जदयू एनडीए में था। अब एनडीए से उसके रास्ते अलग हैं तो स्वाभाविक तौर पर झामुमो के साथ उसकी दोस्ती जमने के आसार हैं।