पटना: उपेन्द्र कुशवाहा ने विप सदस्यता से इस्तीफा दिया, इसके बाद खाली सीट को ब्राह्मण( डॉक्टर राजवर्धन आजाद) से भर दिया गया, ऐसे में सीएम नीतीश पर सवाल उठना लाजिमी है. वो भी तब जब जातीय जनगणना की रिपोर्ट आये महज 14 दिन हुए हैं. जातीय गणना में पिछड़े-अतिपिछड़ों की आबादी सबसे अधिक दिखाई गई,जबकि सवर्णों की आबादी काफी कम. वैसी स्थिति में पिछड़ा सीट को अगड़ा से भरने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार घिर गए हैं. कभी नीतीश कुमार के छोटे भाई रहे और वर्तमान में राजनीतिक दुश्मन उपेन्द्र कुशवाहा ने मुख्यमंत्री के निर्णय पर सवाल खड़े किये हैं, साथ ही जेडीयू के कुशवाहा नेताओं को आगाह भी किया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों अति पिछड़ों को और अधिक अधिकार देने की बात कर रहे. जनगणना रिपोर्ट में अतिपिछड़ों की आबादी सबसे अधिक 36 फीसदी बताई गई है. इस लिहाज से सरकार और विधानमंडल में सबसे ज्यादा भागीदारी अतिपिछड़ों को मिलनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा. जातीय आंकड़ों के बाद सीएम नीतीश ने जो सबसे पहला निर्णय लिया वो अति पिछड़ों-पिछड़ों के खिलाफ गया है. विधान परिषद की जिस सीट पर पिछड़ों-अति पिछड़ों की दावेदारी बन रही थी, उसे अगड़ा जाति से भर दिया गया.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस निर्णय से दल में पिछड़ा वर्ग से आने वाले खास कर जेडीयू के अंदर के कुशवाहा नेता हाथ मलते रह गए. राष्ट्रीय लोक जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने बड़ा सवाल खड़ा किया है. साथ ही कुशवाहा समाज को नीतीश कुमार को लेकर सचेत भी किया है. बता दें, 2021 में उपेन्द्र कुशवाहा के जेडीयू में शामिल होते ही नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था. 2020 विस चुनाव में जेडीयू औंधे मुंह गिर गई और तीसरे नबंर की पार्टी बन गई. इसके बाद नीतीश कुमार को अहसास हुआ था कि कुशवाहा समाज ने उनके प्रत्याशी को वोट नहीं किया. उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा की वजह से भी कई सीटों पर जेडीयू को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था . लिहाजा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उपेन्द्र कुशवाहा को साथ लेने का मन बनाया. हालांकि नीतीश के इस निर्णय से तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह सिंह खुश नहीं थे. उन्होंने इसका विरोध किया था. इससे बेपरवाह नीतीश कुमार ने उपेन्द्र कुशवाहा को दल में शामिल कराया था. नीतीश कुमार ने न सिर्फ पार्टी संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया बल्कि आगे चलकर 2021 में ही राज्यपाल कोटे से विधान परिषद का सदस्य भी मनोनीत कराया. हालांकि अगस्त 2022 के बाद उपेन्द्र कुशवाहा की नाराजगी बढ़ने लगी. लालू यादव से हाथ मिलाने के बाद उपेन्द्र कुशवाहा ने जेडीयू से अलग होने का निर्णय लिया और 20 फऱवरी 2023 को पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
जिस राज्य की राजनीति जाति आधारित हो, वहां पर हर निर्णय जाति के चश्मे से देखना स्वाभाविक है. अब जरा देखिए…उपेन्द्र कुशवाहा ने विप सदस्यता से इस्तीफा दिया, इसके बाद खाली सीट को ब्राह्मण( डॉक्टर राजवर्धन आजाद) से भर दिया गया, ऐसे में सीएम नीतीश पर सवाल उठना लाजिमी है. वो भी तब जब जातीय जनगणना की रिपोर्ट आये महज 14 दिन हुए हैं. जातीय गणना में पिछड़े-अतिपिछड़ों की आबादी सबसे अधिक दिखाई गई,जबकि सवर्णों की आबादी काफी कम. वैसी स्थिति में पिछड़ा सीट को अगड़ा से भरने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार घिर गए हैं. कभी नीतीश कुमार के छोटे भाई रहे और वर्तमान में राजनीतिक दुश्मन उपेन्द्र कुशवाहा ने मुख्यमंत्री के निर्णय पर सवाल खड़े किये हैं, साथ ही जेडीयू के कुशवाहा नेताओं को आगाह भी किया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों अति पिछड़ों को और अधिक अधिकार देने की बात कर रहे. जनगणना रिपोर्ट में अतिपिछड़ों की आबादी सबसे अधिक 36 फीसदी बताई गई है. इस लिहाज से सरकार और विधानमंडल में सबसे ज्यादा भागीदारी अतिपिछड़ों को मिलनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा. जातीय आंकड़ों के बाद सीएम नीतीश ने जो सबसे पहला निर्णय लिया वो अति पिछड़ों-पिछड़ों के खिलाफ गया है. विधान परिषद की जिस सीट पर पिछड़ों-अति पिछड़ों की दावेदारी बन रही थी, उसे अगड़ा जाति से भर दिया गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस निर्णय से दल में पिछड़ा वर्ग से आने वाले खास कर जेडीयू के अंदर के कुशवाहा नेता हाथ मलते रह गए.
राष्ट्रीय लोक जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने बड़ा सवाल खड़ा किया है. साथ ही कुशवाहा समाज को नीतीश कुमार को लेकर सचेत भी किया है. बता दें, 2021 में उपेन्द्र कुशवाहा के जेडीयू में शामिल होते ही नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था. 2020 विस चुनाव में जेडीयू औंधे मुंह गिर गई और तीसरे नबंर की पार्टी बन गई. इसके बाद नीतीश कुमार को अहसास हुआ था कि कुशवाहा समाज ने उनके प्रत्याशी को वोट नहीं किया. उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा की वजह से भी कई सीटों पर जेडीयू को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था . लिहाजा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उपेन्द्र कुशवाहा को साथ लेने का मन बनाया. हालांकि नीतीश के इस निर्णय से तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह सिंह खुश नहीं थे. उन्होंने इसका विरोध किया था. इससे बेपरवाह नीतीश कुमार ने उपेन्द्र कुशवाहा को दल में शामिल कराया था. नीतीश कुमार ने न सिर्फ पार्टी संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया बल्कि आगे चलकर 2021 में ही राज्यपाल कोटे से विधान परिषद का सदस्य भी मनोनीत कराया. हालांकि अगस्त 2022 के बाद उपेन्द्र कुशवाहा की नाराजगी बढ़ने लगी. लालू यादव से हाथ मिलाने के बाद उपेन्द्र कुशवाहा ने जेडीयू से अलग होने का निर्णय लिया और 20 फऱवरी 2023 को पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
जिस राज्य की राजनीति जाति आधारित हो, वहां पर हर निर्णय जाति के चश्मे से देखना स्वाभाविक है. अब जरा देखिए…उपेन्द्र कुशवाहा ने विप सदस्यता से इस्तीफा दिया, इसके बाद खाली सीट को ब्राह्मण( डॉक्टर राजवर्धन आजाद) से भर दिया गया, ऐसे में सीएम नीतीश पर सवाल उठना लाजिमी है. वो भी तब जब जातीय जनगणना की रिपोर्ट आये महज 14 दिन हुए हैं. जातीय गणना में पिछड़े-अतिपिछड़ों की आबादी सबसे अधिक दिखाई गई,जबकि सवर्णों की आबादी काफी कम. वैसी स्थिति में पिछड़ा सीट को अगड़ा से भरने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार घिर गए हैं. कभी नीतीश कुमार के छोटे भाई रहे और वर्तमान में राजनीतिक दुश्मन उपेन्द्र कुशवाहा ने मुख्यमंत्री के निर्णय पर सवाल खड़े किये हैं, साथ ही जेडीयू के कुशवाहा नेताओं को आगाह भी किया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों अति पिछड़ों को और अधिक अधिकार देने की बात कर रहे. जनगणना रिपोर्ट में अतिपिछड़ों की आबादी सबसे अधिक 36 फीसदी बताई गई है. इस लिहाज से सरकार और विधानमंडल में सबसे ज्यादा भागीदारी अतिपिछड़ों को मिलनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा. जातीय आंकड़ों के बाद सीएम नीतीश ने जो सबसे पहला निर्णय लिया वो अति पिछड़ों-पिछड़ों के खिलाफ गया है. विधान परिषद की जिस सीट पर पिछड़ों-अति पिछड़ों की दावेदारी बन रही थी, उसे अगड़ा जाति से भर दिया गया.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस निर्णय से दल में पिछड़ा वर्ग से आने वाले खास कर जेडीयू के अंदर के कुशवाहा नेता हाथ मलते रह गए. राष्ट्रीय लोक जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने बड़ा सवाल खड़ा किया है. साथ ही कुशवाहा समाज को नीतीश कुमार को लेकर सचेत भी किया है. बता दें, 2021 में उपेन्द्र कुशवाहा के जेडीयू में शामिल होते ही नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था. 2020 विस चुनाव में जेडीयू औंधे मुंह गिर गई और तीसरे नबंर की पार्टी बन गई. इसके बाद नीतीश कुमार को अहसास हुआ था कि कुशवाहा समाज ने उनके प्रत्याशी को वोट नहीं किया. उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा की वजह से भी कई सीटों पर जेडीयू को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था . लिहाजा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उपेन्द्र कुशवाहा को साथ लेने का मन बनाया. हालांकि नीतीश के इस निर्णय से तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह सिंह खुश नहीं थे. उन्होंने इसका विरोध किया था. इससे बेपरवाह नीतीश कुमार ने उपेन्द्र कुशवाहा को दल में शामिल कराया था. नीतीश कुमार ने न सिर्फ पार्टी संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया बल्कि आगे चलकर 2021 में ही राज्यपाल कोटे से विधान परिषद का सदस्य भी मनोनीत कराया. हालांकि अगस्त 2022 के बाद उपेन्द्र कुशवाहा की नाराजगी बढ़ने लगी. लालू यादव से हाथ मिलाने के बाद उपेन्द्र कुशवाहा ने जेडीयू से अलग होने का निर्णय लिया और 20 फऱवरी 2023 को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. उपेन्द्र कुशवाहा 24 फरवरी 2023 को विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया था.
तब से विधान परिषद की यह सीट खाली थी. कयास लगाये जा रहे थे कि उपेन्द्र कुशवाहा के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर किसी पिछड़े-अति पिछड़ा समाज से आने वाले किसी नेता को विधान परिषद भेजा जायेगा. इस रेस में जेडीयू में कुशवाहा जाति से आने वाले दो-तीन नेता थे. सभी अपने-अपने हिसाब से दावेदारी जता रहे थे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पिछड़ा का हिस्सा अगड़ा के खाते में चला गया. राज्यपाल कोटे से विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले विशेषज्ञों का मनोयन किया जाता है. ऐसा नहीं कि पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग में विशेषज्ञ नहीं थे, जिन्हें मुख्यमंत्री की सिफारिश पर राज्यपाल विप सदस्य के रूप में मनोनीत कर सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आठ महीने से राज्यपाल कोटे वाली विप की एक सीट को भरने का निर्णय लिया. मुख्यमंत्री की सिफारिश पर राज्यपाल ने 13 अक्टूबर को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे और बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉ. राजवर्धन आजाद को बिहार विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया है. डॉ. राजवर्धन आजाद अगड़ी जाति(ब्राह्मण) जाति से आते हैं.