दरभंगा। बहेड़ी प्रखंड के आमता के रामकुमार मल्लिक को पद्मश्री मिलने पर जिले में खुशी की लहर है। वह दरभंगा घराने (मल्लिक घराना) के विश्वविख्यात संगीत परिवार से ताल्लुक रखते हैं। लगभग 500 वर्ष से चली आ रही इस ध्रुपद परंपरा की 12 वीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका प्रशिक्षण बचपन से ही अपने गुरु और पिता विश्वविख्यात ध्रुपद गायक पं विदुर मल्लिक के मार्गदर्शन में हुआ। दादा विख्यात ध्रुपद गायक पं सुखदेव मल्लिक से भी सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इनकी गायकी में गौहार वाणी एवं खंडार वाणी का सुमधुर प्रयोग स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
इन्हें पूर्व में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं। वर्ष 1985 में राष्ट्रीय युवा उत्सव में प्रथम स्थान पर रहे। कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा का प्रतिनिधित्व करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से सम्मानित हुए। वर्ष 2005 में विद्यापति सेवा संस्थान, दरभंगा की ओर से अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन, दिल्ली में मिथिला रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया। युवा, कला और संस्कृति विभाग पटना (बिहार सरकार) द्वारा साधना सम्मान-2016 से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2017 में ध्रुपद संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए अपने पिता एवं गुरुजी के नाम पर पंडित विदुर मल्लिक ध्रुपद संगीत गुरुकुल, दरभंगा (बिहार) की स्थापना की। इसमें छात्र-छात्राओं को ध्रुपद संगीत का प्रशिक्षण दे रहे हैं।