- दिखावे के चक्कर मे पीस रहे हैं मध्यंवर्गीय व गरीब परिवार
- पारम्परिक रस्मों को भूल अपना रहे हैं आधुनिक रस्मों रीवाज
आलेख: रवि भूषण पांडे, शिक्षाविद
आज कल शादी विवाह पर होने वाले खर्च को लेकर माध्यम वर्गीय व गरीब परिवार के मुखिया के चहरे पर स्पष्ट चिंता की लकीरें दिखाई दे रही है। ये चिंता की लकीरें क्यों न हो। इस विषय पर चर्चा करते हुए शिक्षाविद व समाजसेवी रवि भूषण पाण्डेय कहते हैं कि घर के नवयुवन लड़के लड़कियाँ अपने परिवार की आर्थिक स्थिति की वास्तविकता को जानते हुए भी अपने शादी मे फिजुल- खर्ची के लिए उतारू हैं, जिसके सामने माँ बाप विवश नज़र आ रहे हैं। हम सभी को याद होना चाहिए की कुछ वर्ष पहले हम सभी के यहाँ शादी मे युवक युवतियों का हल्दी की रस्म हुआ करती थी, ये कोई रस्म नही यह एक पुरातन विज्ञान पद्धति है ।
हल्दी प्राचीन समय से औषधीय के रूप में इस्तेमाल होने वाला मसाला है। इसमें एंटी बैक्टीरियल, और एंटी सेप्टीक, एंटी डिप्रेशन जैसे गुण होते हैं। इसे लगाने से त्वचा पर किसी इंफेक्शन का खतरा नहीं होता है, और यह डिटॉक्स रहती है। साथ ही हल्दी लगाने से बॉडी रिलेक्स होती है, और स्किन में चमक आती है। ऐसे में हल्दी को शादी के कारण होने वाली नर्वसनेस को कम करने में कारगर माना जा सकता है। साथ हीं हल्दी के रस्म मे नए जोड़े को आशिर्वाद देने के लिए देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। इसमें भगवान विष्णु का विशेष स्थान होता है। इसलिए उनके आशीष के लिए उनका पसंदीदा रंग पीला और हल्दी का प्रयोग शादी में किया जाता है। यही कारण है, हल्दी या कई रस्मों में दूल्हा-दुल्हन पीले रंग के कपड़े भी पहनते हैं।
लेकिन आज के परिवेश मे नवयुवन युवा व युवातियाँ अमीर और कुलिन वर्ग के देखा देखी कर अपने को दिखाने के लिए अपने माँ बाप को फिजूल खर्ची व कर्जा के कुएं मे धकेलने मे पीछे नही हट रहे हैं। इस रस्म को बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसमें सभी सगे-संबंधी शामिल होते हैं। दूल्हा-दुल्हन को हल्दी लगाने के बाद लोग आपस में एक-दूसरे को रंगने के लिए काफी भाग दौड़ भी करते हैं। सीधी भाषा में कहे तो हल्दी की रस्म शादी का सबसे मजेदार पल होता है।
बहुत पहले हमलोग फिल्मों मे देखा करते थे मेहंदी और संगीत की रस्में । इसका अनुसरण कुलिन व अमीर घरानों ने शुरु किया जिसका असर अब ग्रामीण इलाकों मे भी देखने को मिल रहा है।ग्रामीण क्षेत्रों मे भी ये रस्मों व रीवाजों पर फिजूल खर्ची मे पैसे पानी की तरह बहाया जा रहा है जिसे माँ बाप ने हाड़ तोड़ मेहनत और कमाई की पाई पाई जोड़ कर अपने बच्चों की शादी के लिए इक्कठा करते हैं, लेकिन ये युवा व युवातियाँ बिना सोचे समझे अपने माँ बाप की हैसियत के विपरीत जा कर अनावश्यक खर्च कराने पर आमादा हैं। समर्थ लोग जिनकी आमद अच्छी खासी है उसका मुकाबला एक मध्यमवर्गीय परिवार कैसे कर सकता है ? पर नही, ये ना समझ लड़के लड़कियाँ जिद्द कर अपने गरीब माँ बाप को मजबूर कर दे रहे हैं।
आज कल के बच्चे (जिनकी शादी होनी है ) वो अपने माँ बाप को समझते दिखते हैं कि अगर ये सब हमलोग नही करेंगे तो लोग हमलोग को गवार,अनपढ़, जाहिल व पुराने विचार वाले समझेंगे और हमारी इज्जत नही करेंगे।
वास्तव मे देखा जाये तो हम अभिभावक कम दोषी नही हैं, क्यों कि हमने अपने बच्चों को सही समय पर अपनी स्थितियों परिस्थियों से अवगत नही कराते हैं और ना हीं समझते हैं। बच्चों को समय समय पर फिजूलखर्ची से बचने एवं अपने संस्कार व परम्परिक अनुष्ठान के बारे मे चर्चा एवं बनावटी एवं दिखावा वाली परिपाटी से अवगत कराते रहना चाहिए।
अपने को दिखावटीपन के आकांठ मे डूबने से बचने के साथ साथ अपने घर के मंगलिक कार्यक्रम व शादी विवाह पर बाज़ारवाद के गिरफ्त मे आने से बचना चाहिए।