पटना। अपना बिहार आज 112 साल का हो गया। गंगा, सोन और पुनपुन ही नहीं बल्कि ज्ञान, विज्ञान, धर्म और अध्यात्म का संगम अपने प्रदेश की राजधानी रही है। बंगाल से 112 साल पहले 22 मार्च को बिहार-ओडिसा प्रांत की राजधानी बनी इससे पहले पूर्वजों ने यहां शिक्षण संस्थानों विरासत के रूप में छोड़कर गए। देश का पहला ताम्र डाक टिकट इसी धरती पर जारी हुआ। संपत्ति का निबंधन स्वर्ण हस्ताक्षर से होने का गौरवपूर्व इतिहास बिहार का रहा है। इसे आगे भी गढ़ेंगे तब तो आगे बढ़ेंगे। आजादी की लड़ाई में बलिदान देने, किसान आंदोलन और संविधान निर्माण में बिहार का योगदान रहा है। देश के प्रथम राष्ट्रपति बिहार ने देश को दिया।
लोकसभा चुनाव के कारण इस बार कोई राजकीय कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो रहा है लेकिन बार-बार आपदा से लड़कर खड़ा होने वाला बिहार के लिए 22 मार्च गौरवशाली दिवस के रूप में यादगार है। जो बंगाल से 22 मार्च 1912 को स्वतंत्र बिहार एंड औडिस प्रांत बना। आज साइकिल से स्कूल आती-जाती बेटियों। गांव और शहरों को संवरती आधी आबादी, सामाजिक कुरीतियों को दूरकर सामाजिक बदलाव के लिए जतन कर रही हैं- बेटियां। कंधे पर बंदूक, कमर में तमंचा और अदालत में कानूनी बहस आज उनका श्रृंगार बन रही हैं।
देश को आजाद करने के लिए पटना के स्कूली छात्रों ने शहादत दी। सचिवालय के समक्ष सतपूर्ति बलिदान की स्मृति है। देश का जब संविधान बन रहा था तब सचिदानंद सिन्हा का बड़ा योगदान था। आजादी के बाद देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद अंतिम दिनों में पटना सदकत आश्रम में बिताया।
उनका निजी बैंक खाता आज भी पटना के एक्जीविशन रोड पंजाब नेशनल बैंक में स्मृति के रूप में है। देशरत्न हा राजेंद्र प्रसाद को पटना सिटी नगरपालिका का अध्यक्ष और बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिन्य को उपाध्यक्ष बनने देखा। बापू ने यहां आकर चंपारण आंदोलन को जन्म दिया तो देही स्वामी सहजानंद सरस्वती को बिहटा में आश्रम बनकर जमींदारी प्रथा के खिलाफ किसान आंदोलन खड़ा करते भी देखा है।