बिक्रमगंज। बिक्रमगंज प्रखंड के दुर्गाडीह एवं मोरौना पहुंचे श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के परम शिष्य लक्ष्मी प्रपन्ना श्री जियर स्वामी जी महाराज ने सनातन की प्राचीनता एवं उसके महानता का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि समय एवं विवेक के अंतर्गत सनातन संस्कृति में अलग-अलग धर्मावलंबियों ने अपने अपने तरीके से आराधना पद्धति को विकसित किया। इसका अर्थ यह नहीं कि उनकी आराधना पद्धति सनातन संस्कृति से अलग रही। जिस तरह व्यक्ति का खानपान और परिधान परिवर्तित होने पर भी कभी उसका कुल परिवर्तन नहीं होता।
उसी तरह अलग विकसित आराधना पद्धतियों को सनातन से कभी अलग नहीं समझा जा सकता। सनातनी ग्रंथों तथा मूर्ति पूजा पर वर्तमान में मची आलोचनात्मक घमासान के संदर्भ में स्वामी जी ने कहा कि यदि सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत आधार कार्ड व्यक्ति की पहचान हो सकता है तो फिर मूर्ति पूजा ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम क्यों नहीं हो सकता। शास्त्रों के स्वरूप को नहीं जानने के कारण वर्तमान की स्थितियां उत्पन्न हो रही है। सनातन संस्कृति 50 हजार करोड़ वर्ष प्राचीन है। जबकि ईसाइयत 2 हजार 23 वर्ष एवं इस्लामीययत पंद्रह सौ वर्ष पूर्व में उदय हुआ था। प्राणियों के कल्याणार्थ संतों का अवतरण पृथ्वी पर होता रहा है। जिनका सानिध्य भटकाव से मनुष्य को दूर कर सत्कर्म पर चलने की प्रेरणा देता है। वही निर्मल स्वरूप निवास स्थल को बैकुंठ एवं सदाचार से जीवन यापन करने वाले भक्तों के समीप भगवान का निवास करने की बात उन्होंने बताया। मौके पर सैकड़ों महिला एवं पुरुष श्रद्धालु उपस्थित थे।